Jul 24, 2008

बच के रहना रे बाबा

मुझे दौगले लोगो पर बहुत गुस्सा आता है, जो मुँह पर तो आप के इतने खास बन जाते है कि दुनिया में उन के सिवा आप का कोई दूसरा शुभचिंतक है ही नही। लेकिन वही पीठ के पीछे सब ज्यादा खतरनाक साबित होते है। उन के चेहरे पर शराफत का नकाब अगर उतर जाए तो असली चेहरा सामने आ जाए। ऐसे लोगो को ढूंढ़ने के लिए आप को ज्यादा लंबा रास्ता तय नही करना पड़ेगा बस अपने आस पास नज़र घुमाए नज़र आ जाए के इस तरह के लोग। खास करके कार्यस्थल पर ऐसे लोगों की कमी नही होती। बातों को सुन कर लगता ही नहीं की वह कुछ खास किस्म के प्राणी की केटेगरी में शामिल है। आज कल तो किसी पर भरोसा करने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है कि आप से मीठी मीठी बातें करने वाला आप का सच मेँ भला चाहने वाला है कि नहीं। आज कल का जमाना नहीं है कि कोई बिना मतलब के चार मीठी बातें कर ले। हर बात के पीछे कोई न कोई मतलब छिपा होना तय है। ज़माने की हवा का रुख ही ऐसा हो गया है कि आप ख़ुद को ऐसे लोगो से बचा नही सकते। वक्त इतना इंसान को बदल देता है इस का उदारण देने की जरूरत नही रह गई ख़ुद- ब -ख़ुद नज़र आ जाता है। लगता है इस तरह की हवा में अब कहना ग़लत नही होगा कि इंसान वक्त को बदल रहा है। कभी कभी मन करता है की ऐसे लोगों के साथ जैसे को तैसा किया जाए तो कुछ असर हो। पर हम उन के चक्कर में अपनी नेचर को नही बदल सकते।

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