Sep 18, 2008

ये कैसी श्रद्धा है हमारी


हर इंसान की भगवान के प्रति अपनी आस्था होती है। कोई अपने फायदे के लिए तो कोई मन की शांति के लिए भगवान को प्रसन्न करने में जुटा हुआ है। पर कभी सोचा है कि हम अंजाने में भगवान का आदर नहीं निरादर कर रहे है। मेरी मंशा किसी की भावना को ठेस पहुंचाने की नहीं है, बस मैं कुछ बातों के जरिए सब का ध्यान इस तरफ लाना चाहती हूं कि जिस भगवान की पूजा करते है उसे ही क्यों कूड़े का ढेर बना देते है। हम जिस भगवान की पूजा के लिए हर चीज को शुद्ध करते है। उसी का निरादर होते देख हम चुप्पी क्यों साध लेते है। अभी हमने कुछ दिन पहले गणेश महोत्सव मनाया है। दस दिन तक श्री गणेश की स्थापना के साथ उनकी दिन रात पूजा की। पूरी श्रद्धा के साथ उनका गुणगान किया। फिर बाद में उनको जल प्रवाह किया। इसी के साथ क्या हमारी आस्था, श्रद्धा भी जल में बह गई। जिस भगवान को हमने जल में प्रवाह कर दिया, क्या बाद में हमारी नजर गई उस भगवान की प्रतिमा का क्या हुआ। दरिया, नदियों के किनारे वह उनकी प्रतिभा किस हाल में है। शायद भगवान के भक्तों के पास इतना समय कहां कि देख पाए कि हमने किया क्या है। बस दस दिन पूजा की, काम पूरा कर लिया अब क्या देखना कि हमारी श्रद्धा कहा है। जिस भगवान के हम जोर शोर से घर पर लाए, उसी शान से विदा भी किया। आज नगरनिगम की सफाई की गाड़ियां उन प्रतिमा को उठा रही है तो कहीं हमारे पैरों के नीचे आ रही है। इतना ही नहीं खंडित भगवान की प्रतिमा हमारी आंखों के सामने है पर हम चुपचाप तमाशा देख रहे है। यह सब देख कर हमारी आस्था क्यों नहीं जागती। हमारी श्रद्धा कहां चली जाती है, जब हम खुद अपने भगवान का अपमान करते है

Sep 8, 2008

ए भाई जरा देख के चलो


सड़क पर बढ़ती गाड़ियों की संख्या। चारों तरफ भागती अंधा धुंध गाड़ियां। आए दिन सड़कों पर होते हादसे। फिर भी रफ्तार पर ब्रेक नहीं लगती। तेज रफ्तार के चक्कर में कई लोग रोज अपनी जान गंवाते है तो कई दूसरों को भी अपनी गलती की सजा दे देते है। रोजाना समाचार पत्रों के पन्नों पर सड़क हादसे में मौत के समाचार छपते है। हम उसे देखकर भी अनदेखा कर देते है। फिर निकल पड़ते है उसी रास्तें पर। थमती जिंदगी के आगे रफ्तार कम नहीं करते। रोजाना सड़कों पर बढ़ते हादसों से भी हम सीख नहीं ले रहे। सड़क कर निकलते समय हम अपने परिवार के बारे में अगर सोच ले तो शायद हमारी बढ़ती रफ्तार पर खुद-खुद कंट्रोल हो जाएगा। गाड़ी चलाते समय मोबाइल को सुनना, तेज रफ्तार से गाड़ी चलाना, तेज म्यूजिक, नशे का सेवन सब हमारी जान के दुश्मन है। इन सबके बारे में समझ कब आएगी। थोड़ी सी जल्दबाजी कितनी देर कर सकती है, इसका अंदाजा न तो कोई लगा रहा है और न ही किसी के पास इस बारे में सोचना का समय है। तेज रफ्तार के चलते नुक्सान ही होता है। कभी किसी से टक्कर तो कभी झग़ड़ा। कई बार तो जीवन लीला का अंत। अकसर हमारी छोटी से गलती, हमारे लिए जीवन भर की सजा भी बन सकती है। जरा देख कर चला जाए तो हम अपने साथ-साथ कई जिंदगियां बचा सकते है। कम से कम सड़क कर चलते समय सावधानी बरतनी चाहिए।

Aug 31, 2008

खोखले होते हमारे रिश्ते

रोजाना समाचार पत्रों की सुर्खियां बन रही है कि अपने ने ही अपनों को मार डाला। कभी जमीन के लिए तो कभी पैसे के लिए। कुछ दिन पहले कि घटना कि एक लड़के के अपने मां बाप को वृद्ध आश्रम भेज दिया, क्यों वह बीमार रहते थे और उसके पास अपने बुजुर्ग माता पिता के लिए समय नहीं था । ऐसी हवा चल रही है जिससे लगता है हमारे रिश्ते खोखले होते जा रहे है, स्वार्थ का दीमक हमारे अपनेपन के अहसास को खत्म करता जा रहा है। मां-बाप बच्चों तो पालते है, लेकिन बच्चे क्या कर रहे है। उनको वृद्ध आश्रम का रास्ता दिखा दिया, क्योंकि उनको वह बोझ लगने लगते है। पिछले दिनों एक वृद्ध आश्रम जाने का मौका मिला तो वहां के बुजुर्गों का दर्द सुन कर आंखो में नमी के साथ-साथ शर्मिंदगी थी कि हम अपनों को बोझ मानने लगे है। उन बुजुर्गो को जिन्होंने हमारी खुशी के लिए अपना जीवन का हर वो पल निछावर कर दिया, जिससे वह जीवन भर की खुशियां हासिल कर सकते थे। क्या आज हम आधुनिकता की दौ़ड़ में इतना व्यस्त हो चुके है कि हमारे अपने-अपनों के साथ के लिए तरस रहे है। लेकिन हम शायद यह भूल रहे है कि हम भी कभी उनकी उम्र में पहुंचेंगे, तब क्या अपनों की कमी नहीं महसूस होगी। स्वार्थ इतना हम पर हावी हो रहा है कि खुद के सिवा कुछ भी नहीं सोच पा रहे। खुद के लिए खुशियां तो ढूंढते है, लेकिन खुद के रिश्तों को कही दूर छोड़ते जा रहे है। विदेशी सांस्कृति का असर हम पर हो रहा है, वहां की तेज रफ्तार और व्यस्त जीवन का कलचर हमारे मनों पर ज्यादा छाप छोड़ रहा है। किसी दूसरे देश की संस्कृति को अपनाने में बुराई नहीं, लेकिन अपनी संस्कृति को भूलना गलत है।

Aug 17, 2008

बदला बदला है सब नजारा।

बदला बदला नजारा है। हमारे नेता जो कल तक खादी में नजर आते थे, आज स्टाइलिस सूट उनकी शान बन चुकी है। लग्जरी गाड़ी में शान की सवारी का अंदाज ही कुछ अलग हो चला है। हमारे देश के ज्यादातर नेता राजनीति की जानकारी रखे न रखे बस बैकराउंड सोलड होनी चाहिए। बरसों तरफ जुर्म की दुनिया रहने के बाद नेता की कुर्सी बहुत जल्दी हासिल हो जाती है। चाहे जीवन में कुछ अच्छा न किया हो लेकिन वोट के लिए अच्छाई का चोला पहन कर खुद को अच्छा साबित करने में जरा भी गुरेज नहीं होता। इन की पब्लिसटी देख कर हमारे अभिनेता-अभिनेत्रियों को भी कुर्सी का चस्का लगने लगा है। गोबिंदा, स्मिति इरानी, हेमा मालिनी, धर्मेद्र सहित कितने अभिनेता राजनीतिक में कदम रख चुके है। अगर खुद को टिकट नहीं मिलता को पार्टी की चुनावी रैलियों का हिस्सा बन कर जनता के बीच आना उनको भा रहा है। भोली-भाली जनता भी उनकी एक्टिंग पर इतनी फिदा होती है, कि वह अपना नेता चुन कर इन को सत्ता में ले आती है। अभिनेता तो आखिर अभिनेता है रहते है, चुनावी मौसम में मंच पर चंद भावुक डायलाग सुना कर जनता के वोट पर अपना नाम दर्ज करवा लेते है। जीतने के बाद वापिस कभी अपने क्षेत्र की सुध लेना उनको भूल जाता है। जनता पूरे पांच वर्ष तक अपने चहेते नेता का इंतजार करती है, लेकिन मानसून के मैढक की तरह वह बिना चुनावी बारिश के कभी दिखाई नहीं देते। दूसरी तरफ अच्छा खासा क्रीमिनल रिकार्ड लेकर जुर्म की दुनिया में नाम कमाने वाले लोगों को भी चुनाव के दौरान टिकट आसानी से मिल रहे है। हमारी बड़े-बड़े दावे करनी वाली पार्टियां भी उनको टिकट देकर अपना सीट को कायम करना चाहती है। सत्ता में आने के बाद फिर वहीं मार-दाड़ शुरू होती है। कभी बहुमत बचाने के लिए जोड़-तोड़ तो कभी सत्ता में बैठे अनबन होने पर बहुमत वापिसी का दावा। फिर शुरू होता है कुर्सी बचाए रखने के लिए नोटतंत्र का दौर शुरू। ऐसे में कैसे कह सकते है कि हम जिन को चुन कर सत्ता में भेजते है उनके हाथों में हमारा वह देश सुरक्षित है, जिनके लिए भगतसिंह जैसे भारत मां के सपुतों ने जानें कुर्बान कर दी। चंद नोटों के अपना ईमान तक गिरवी रखने वाले हमारे नेता क्या हमारे देश को बचा पा रहे है। कभी देश में जात-पात के नाम पर मार-काट तो कभी धर्म के नाम पर प्रदर्शन। हमारे देश में सबकुछ इतना बदल गया है कि नेताओं के स्वार्थ में आम आदमी खुद ही दुश्मन बन बैठा है। चुनावी मौसम में तो जनता नेताओं के लिए भगवान बन जाती है, जो उनकी डुबती नैया को पार लगाएगी। नेता भी उन लोगों के बीच जाकर खुद को कभी बेटा तो कभी भाई के रूप में साबित करने में लग जाते है, तांकि उनकी भावनाओं को जगा कर खुद के लिए वोट पक्की कर ली जाए। लेकिन उन नेताओं के जीत के बाद उन लोगो के बीच आने के लिए दस बार सोचना पड़ता है।

Aug 16, 2008

आज़ादी का जश्न

आज़ादी का ६१वां जश्न मना कर कितना मान महसूस कर रहे है, वह आजादी जो हमारे शहीदों ने अपनी जान कुर्बान कर अंग्रेजों को खदेड़ कर हमें दी थी। पर आज हम खुद अपनी भारत मां की बेड़ियां तो बांध रहे है।आजादी का परवानो ने अपनी दुल्हन के लिए शहादत पाई थी, आज वह भी अपने आजाद भारत को देख कर रौते होंगे कि क्या इस दिन के लिए आजाद हुआ था भारत। जहां पर आज भाई-भाई का दुश्मन बन चुका है। धर्म के नाम पर एक दूसरे का खून बहाया जा रहा है। कभी मंदिर में बम फट रहे तो कभी मस्जिद में। कभी बेटी की आबरू लूट रही है तो कभी मां के सीने पर खुद बेटे ही वार कर रहे है। आज हर तरफ कोहराम मचा है। चंद नेताओं ने अपनी खुदगर्जी के लिए हमारी मां के टूकड़े किए थे, आज उस जैसे कितने ही नेता इस कतार में है कि भारत मां के कुछ अंगों को फिर से अलग कर दिया जाए। मां के सपूत कितने होनहार है कि वह उसके इरादों को आज भी नहीं समझ रहे बस कतपुतली बन नाच रहे है। आज चाहे हिंदू है या मुस्लिन, ईसाई है या फिर सिख। हर किसी को खुद से सिवा कोई दूसरा नजर नहीं आ रहा। क्या आज सभी भारत मां की संतान नहीं ? १९४७ में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ था। उससे समय दोनों तरफ खून की नदियां बह रही थी। कोई भी कम नहीं रहना चाहता था। बहू बेटियों का आबरू सरेआम लूट रही थी। लेकिन आज उस माहौल में कितना बदलाव है। क्या आज भी बहु-बेटियां सुरक्षित है। पहले दूसरे से उनकी रक्षा करनी पड़ती थी, आज घर ही शैतानों की कमी नही है। जाति और धर्म के नाम पर लगाई आग इतनी तेजी से फैल रही है कि लगता है कि हमारे देश को निगल लेगी। आज भारत मां को हम ने इतनी बेडि़यों में जकड़ दिया है कि उसका सांस लेना मुश्किल हो गया है। हम जिन नेताओं के हाथ अपने देश की बागडोर सौपते है, उनको भी सिवा कुर्सी के कुछ दिखाई नहीं देता। बस अपनी कुर्सी बचाने की चिंता रहती है, जनता और देश गया बाड़ में। लोकतंत्र और प्रजातंत्र की दुहाई देने नेता आज नया तंत्र ले आए है नोटतंत्र। कुर्सी बचाने के लिए नोटों की बारिश। लोगों के घर चुल्हा जले न जले हमारे नेता हर छोटी छोटी बातों पर जश्न मनाते नजर आएंगे। मंच पर लंबे लंबे भाषण देकर जनता को मुर्ख बनाना तो कोई इन से सीखे। पांच साल के बाद जनता की याद आती है। नोटों और शराब की बोतलों के साथ चुनाव में खुद को साबित कर वह कुर्सी तो हासिल कर लेते है, लेकिन फिर उसी जनता को पहचानने से गुरेज करने लगते है। ऐसे में कैसे आजादी को हम बचा पाएंगे, जहां की जनता खुद को गुलाम बना रही है, वह अपनी आजादी की रक्षा कैसे कर पाएगी।

Aug 10, 2008

अब सब बोले बम बम भोले

अब तक राम नाम से लोगों के बीच हिंदुत्व का राग अलापने वाली बीजेपी अब बम-बम भोले की शरण में आ गई है। सावन माह को महादेव को खुश करने के लिए सभी मंदिरों में पूजा करते है तो ऐसे में बीजेपी कैसे पीछे रहे। इतना जरूर है कि बीजेपी मंदिर के साथ-साथ मंच से भी बम-बम भोले को खुश करने के प्रयास करने में सबसे आगे निकल चुकी है। लोगों के बीच अब तक जो नेता राम के नाम पर वोट मांगते आए है उनका अंदाज अब भी वही होगा, जब राम नाम के स्थान पर अब वह महादेव बम-बम भोले बोलते नजर आएंगे। बीजेपी का हर नेता बम-बम भोले की फौज बन कर लोगों के मनों में दस्तक देने की कोशिश करन में जुट गया है। आज दिल्ली में बीजेपी की रैली के दौरान मंच महादेव की पूजा करने के बाद जब अडवाणी सहित कई बड़े-बड़े नेता जब बम-बम भोले बोले तो लगा कि बीजेपी के सुर नए है। जम्मू की आग की लपटों ने बीजेपी के नेताओं को राम नाम भुला कर बम-बम भोले का जाप सीखा दिया है। मंच पर अडवाणी भोले की सेना के सिपाही बन कर गरजे की जमीन लेकर रहेंगे, जैसे जो भी हो। बीजेपी का बम-बम भोले प्रेम देखकर वामपंथी दल भी अपनी किस्मत आजमाने के लिए मैदान में उतर गए है। उन्होंने भी बम-बम भोले के नाम पर केंद्र और कांग्रेंस सरकार को दोषी ठहराना शुरू कर दिया है। अब देखना है कि बम-बम भोले किस पर मेहरबान होंगे। जम्मू में संघर्ष समिति की बैठक बेनतीजा होने का बाद बीजेपी ने भी अपने सुर थोड़े तीखे कर लिए है, क्यों इस समय हिंदुत्व के नाम पर लोगों को अपने साथ जोड़ने का मौका है। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आवंटित भूमि वापस लेने से उठे विवाद से लोकसभा चुनाव में बीजेपी को के हाथ ऐसा बान लगा है जो हिंदुत्व के नाम पर वोट बटोरना में काफी मदद कर सकता है। फिर ऐसे में राम की शरण से निकल बीजेपी महादेव की शरण में आने से कैसे रूक सकती थी। भाजपा ने महादेव के नाम को भुनाने के लिए संघर्ष को जिला स्तर पर शुरू करने को भी हरी झंडी दे दी है। बस देखना यह है कि आने वाले दिनों में बीजेपी और वामपंथी दलों के बीच कौन महादेव को खुश कर पाएगा और बम-बम भोले के जैकारों में किस की आवाज बुलंद रहेगी।

Aug 3, 2008

अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो..


अगले जन्म मोहे बिटिया न कीजो.. इस गीत के बोल एक बेटी की व्यथा को खुद व खुद बयां कर रहे है। कहते है समाज में बेटी के लिए सोच बदली तो है लेकिन कितनी बदलती है यह बहस का मुद्दा है। बेटी के मन की बात शब्दों का रूप ले भी ले तब भी समाज को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि आज भी बेटी को जन्म से पहले ही मारने का सिलसिला जारी है। कितने सेमिनार, कांफ्रेस और कैंप लगा कर लोगों को जागरूक किया जा रहा है, लेकिन घंटे आधे घंटे के भाषण में लोगों की सोच पर ज्यादा फर्क नहीं पड रहा। चाहे सरकार ने कानून बना दिए है, लेकिन डाक्टर खुद चंद रूपये के लिए पाप के भागीदार बन रहे है। क्या बेटी सच में मां बाप पर इतना बोझ बनती जा रही है कि उसको जन्म से पहले ही मार दिया जा रहा है। कितने गीतकारों ने अपनी कलम के माध्मम से अजन्मी बेटी के मन की बात को उजागर किया, कितने गायकों ने उसे अपनी सुरीली आवाज में लोगों तक पहुंचाया। फिर भी लोग बेटी को मारने के लिए वह पत्थर के दिल और खून से रंगे डाक्टर के हाथ कंपकपाते नहीं है। आज हर तरफ बेटियों ने अपना रूतबा कायम किया है पर पुरूष प्रधान समाज को यह बात स्विकार करने में अभी वक्त लगेगा। मेरे इन शब्दों से लोगों को बुरा लग सकता है, पर सच्चाई यहीं है कि बेटी का खुद की समाज में पहचान बनाना जल्दी हजम नहीं हो पा रहा। बेटे को तो सभी हक खुद ब खुद दे दिए जाते है, पर बेटी के लिए उसका नजरिया आज भी सदियों पुराना है। बेटा कुछ भी करें सब माफ, बेटी जरा सी गलती कर बैठे तो खान-दान की दुहाई। एक तरह तो कहते है कि बेटे से खानदान का नाम रोशन करता है, फिर सिर्फ बेटियों पर पाबंदियां क्यो? बेटी मायके में है तो हर बात के लिए पिता या भाई से इजाजत जरूरी। बचपन से एक बात परिवार के सदस्य के जुबान पर होती है, जो करना है अपने घर जाकर करना। क्या कहेंगे वो यहीं सिखाया मां-बाप ने। बेटी अरमानों के साथ ससुराल में कदम रखती है, वहां पर भी उसके लिए अपना घर उसे कहीं नजर नहीं आता। अपनी मर्जी से कुछ कर लिया तो वहीं बात अपने घर क्या ऐसा करती थी। पराए घर की है न इसलिए कुछ पता नहीं इसको। फिर सवाल वहीं कि अपने के बीच रह कर बेटी का अपना घर कौन सा है। चारों तरफ उसके अपने है, पर अपनों की भीड़ में वह खुद को पराया महसूस करती है। आखिर कब बदलेगी बेटी के लिए समाज की धारना। आखिर कब मिलेगा उसे अपने घर का आसरा। मेरी बातें लोगों को पसंद नहीं आएगी, लेकिन क्या कोई बता सकता है बेटी का अपना घर कौन सा है। दोनों परिवार अपने है बेटी के लेकिन बेटी किसी की अपनी क्यों नहीं?

फ्रेंडशिप डे




तीन अगस्त को दोस्ती का दिन है। अंग्रेजी में बोले तो फ्रेंडशिप डे। मतलब दोस्तों को अहसास करवाओं कि दोस्ती अभी भी जिंदा है। यह कहां जाए कि अगर फ्रेंडशिप डे न हो तो दोस्ती का अहसास करवाना मुश्किल हो जाएं। कितनी तेजी से हम पश्चिमी सभ्यता में खुद को ढालते जा रहे है, कभी फ्रेंडशिप डे मना रहे है तो कभी चाकलेट डे। अच्छा है बच्चों को दोस्ती का पाठ पढ़ाया जा रहा है।, लेकिन उसमें भी अंग्रेजी तड़का लगा कर। क्या हम दोस्ती को सुदामा श्रीकृष्ण के नाम से नहीं जान सकते। वह निस्वार्थ दोस्ती आजकल नहीं देखने को मिलती। आज कल के दौर में वैसे अच्छे दोस्त मिलना किस्मत की बात हो गई है, पर फिर भी अपनी कोशिश जारी रखनी चाहिए। जीवन में दोस्तों की लिस्ट लंबी करने के स्थान पर चंद दोस्त बनाने ज्यादा बेहतर है। दोस्त तो बहुत मिल जाएंगे पर दोस्ती का मतलब समझने वाले बहुत कम है संसार में। पर आज भी चंद लोग ऐसे है जो दोस्ती को निभाने जानते है। वैसे में ज्यादा कुछ नहीं कहूंगी, आप खुद समझदार है।


---------दोस्ती-------
जीवन में दोस्त बनों ऐसे, नाज करें तुम पर,
वक्त न आए ऐसा कभी कोई हंसे हम पर।
रास्ते बहुत है पथरीले इस राह के प्यारे,
डर मत हम भी राह पर साथ है तुम्हारे।
लंबी डगर है साथी मिलेंगे बहुत तुमको,
पर भीड़ में भी तुम पहचान लेना हमको।
दिखाई न देंगे कभी तो छोड़ ना देना हाथ,
मर कर भी हरदम कदम चलेंगे तुम्हारे साथ।


Aug 1, 2008

मेरा नाम छाप देना जनाब

आए जनाब, पानी पी ली लीजिए। वैसे कौन से समचार पत्र से है आप। मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा, जब से इश्मीत की मौत के बारे में सुना है, दिल बैठा जा रहा है। मेरा नाम जरूर डाल दीजिएगा खबर में, मैं जहां ए पास वाला ही घर है मेरा। क्या बताऊ इश्मीत को मैने अपनी गोद में खेलाया है, बड़ा दुख है। पानी नहीं उतर रहा मेरे गले से। कौन सा पेपर बताया आप ने मेरे नाम के साथ इतना जरूर लिख देना कि मै फलाने बैंक में अफसर हूं। हां तो जनाव आप नहीं लिया आप ने।वैसे कब आएगी खबर कल तो पक्का न। इश्मीत बहुत प्यारा बच्चा था। इतने में दूसरी तरफ एक सज्जन की अवाज कानों में टकराती है कि वो फलाना न्यूजपेपर संभाल लेना, हां वो दूसरे पन्ने की तीसरी फोटों में मैं दिखाई दे रहा हूं। हां-हां आज भी काफी चैनल और अख्बारों वाले है यहां, इसलिए मैं अंदर ही हूं। कल भी मेरी फोटो आएगी अख्बारों में। सच में ऐसे लोगों की बातों से लगा ही नहीं यह किसी सम्मेलन का हिस्सा बनने आए हैं या फिर उसके लिए शोक जताने, जो अब इस दुनिया में नहीं है। अंदर जो सज्जन सब से ज्यादा दुखी दिखाई दे रहे थे, जिन की आंखों में (मगरमछ के आंसू कहूं तो कुछ गलत नहीं होगा) मोटे मोटे गिर रहे थे., वह बस इस लिए वहां है कि कल अख्बारों और चैनलों में उनकी तस्वीरें चमकेंगी। समझ नहीं आता कि क्या लोग जिस घर का चिराग बुझ गया उसको दिलासा दे रहे है या फिर लाश पर भी रोटियां सेक रहे है। लगता है कि इन के लिए किसी का होना न होना कोई मायने नही रखता , बस उन को मौका चाहिए कि मीडिया में खुद को कैसे चमकाया जाए। आज इश्मीत की मौत पर बड़े-बड़े प्रेसनोट बना कर श्रद्धाजंलि भेंट करने का मौका कोई नहीं गंवाना चाहता। श्रद्धाजंलि की एक लाइन लिख कर कम से कम सौ व्यक्तियों के नाम उसपर अंकित कर समाचार पत्रों के दफ्तरों में पहुंचाए जा रहे है। इन नाम छपावे के फोबिया के शिकार लोग चाहे उसके घर शोक जताने गए हो या न।

Jul 27, 2008

झूलो को तरसता सावन


झूलो को तरसता सावन।
सावन के झूले पड़े तुम चले आयो...,। गीतों के जरिए जिंदा सावन की मस्ती का माहौल अब सिर्फ जहन का हिस्सा बन कर रह गया है। अब न तो मस्ती का वो माहौल नजर आता है और न ही अब वह युवाओं में उत्साह। तेज रफ्तार जीवन में लोग खुद में खोए हुए है? कब सावन आया,, कब चला गया। इसकी चिंता करने का समय ही किस के पास है। गांव के वह नजारे आज भी खुद को तरोताजा कर जाते है कि कम से कम किसी बहाने के सभी मिलकर आपस में कुछ समय साथ मिलकर वक्त बीताते थे। सावन के झूलों के नजारों को देखने और उनका आनंद उठाने से वंचित होते हम लोग खुद इसका सबसे बड़ा कारण बन चुके है। अब तो पेड़ नजर नहीं आते, झूलों डाले भी तो कहां। कल अचानक मेरी नजर उन बच्चों पर गई तो सड़क के किनारे लगे उस पेड़ पर टायर का झूला बना कर झूलने पर मस्त थे। उनकी मस्ती को देख कर सावन का ख्याल आ गया । अचानक मन वहीं तस्वीर उभरने लगी। जब हम छुट्टियां बीताने के लिए अपनी दादा-दादी के पास गांव मे जाते थे। पेड़ों पर मोटी रस्सी से झूला डाल कर दिन भर सब ने मिल कर मस्ती करनी। फिर दादी से बताना कि सावन में किस तरह सभी मिलकर पेड़ों के नीचे बैठ कर ञिंजन सजाते थे। कभी-कभी बारिश ही रिमझिम के बीच मिल कर गिद्दा डालती थी। आज लगता है कि दादा-दादी का दौर के साथ ही सावन भी खत्म हो रहा है। मन में एक सवाल बार-बार उभर रहा है कि क्या सावन में झूलों का मजा लेने के लिए हम इसी तरह तरसते रहेंगे। कभी-कभी लगता है कि दादा-दादी के जमाने से हग अब इतना तो जानते है कि सावन में झूला झूलने का क्या महत्व है, लेकिन अगर व्यस्त जीवन की रफ्तार में हम इसी तरह भागते रहे तो आने वाली पीढी़ शायद इससे भी वंचित हो जाएगी। खत्म होती हरियाली के चलते ही आज हम सावन की बारिश का मजा लेने के लिए भी खुद को लाचार मानते है। शहरो में तो पेड़ इतिहास का हिस्सा बनते जा रहे है, पर अब गांव भी पेड़ों को तेजी से कटा जा रहा है। साइंसटिस्ट चाहे इसे ग्लोबल वार्मिंग कहते है, लेकिन हम सब भली भांति जानते है कि खत्म होते जंगल और हरे भरे पेड़ों की बलि देने का नतीजा क्या हो रहा है। भारतीय परंपरा का हिस्सा हमेशा से मौसम बना रहा है। चाहे फागुन का स्वागत हो या फिर सर्द ऋतु की विदाई। सावन का स्वागत तो हर राज्य में अपने तरीके से होता रहा है। पर अब मौसम का स्वागत करनेका समय तो नहीं उसका आनंद भी लेना नहीं चाहते लोग।

keyboard

http://uninagari.kaulonline.com/inscript.htm

Jul 24, 2008

बच के रहना रे बाबा

मुझे दौगले लोगो पर बहुत गुस्सा आता है, जो मुँह पर तो आप के इतने खास बन जाते है कि दुनिया में उन के सिवा आप का कोई दूसरा शुभचिंतक है ही नही। लेकिन वही पीठ के पीछे सब ज्यादा खतरनाक साबित होते है। उन के चेहरे पर शराफत का नकाब अगर उतर जाए तो असली चेहरा सामने आ जाए। ऐसे लोगो को ढूंढ़ने के लिए आप को ज्यादा लंबा रास्ता तय नही करना पड़ेगा बस अपने आस पास नज़र घुमाए नज़र आ जाए के इस तरह के लोग। खास करके कार्यस्थल पर ऐसे लोगों की कमी नही होती। बातों को सुन कर लगता ही नहीं की वह कुछ खास किस्म के प्राणी की केटेगरी में शामिल है। आज कल तो किसी पर भरोसा करने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है कि आप से मीठी मीठी बातें करने वाला आप का सच मेँ भला चाहने वाला है कि नहीं। आज कल का जमाना नहीं है कि कोई बिना मतलब के चार मीठी बातें कर ले। हर बात के पीछे कोई न कोई मतलब छिपा होना तय है। ज़माने की हवा का रुख ही ऐसा हो गया है कि आप ख़ुद को ऐसे लोगो से बचा नही सकते। वक्त इतना इंसान को बदल देता है इस का उदारण देने की जरूरत नही रह गई ख़ुद- ब -ख़ुद नज़र आ जाता है। लगता है इस तरह की हवा में अब कहना ग़लत नही होगा कि इंसान वक्त को बदल रहा है। कभी कभी मन करता है की ऐसे लोगों के साथ जैसे को तैसा किया जाए तो कुछ असर हो। पर हम उन के चक्कर में अपनी नेचर को नही बदल सकते।

Jul 17, 2008

वक्त की चाल

वक्त की चाल
टिक टिक करती घड़ी की सुई, चलती है अपनी चाल।
जाने क्यों उस से वी, लोगो को रहता मलाल।
जो होना है वो तो होगा, सोचना क्यों दिन और साल।
जग में न कोई तेरा न है मेरा, वक्त का सब मायाजाल।
मेरा मेरा सब है कहते, इस जग मैं सब का ये हाल।
दुःख सुख है जीवन के साथी, फिर क्यों हो रहा बेहाल।

Jun 24, 2008

मोबाइल के फायदे

----मोबाइल के फायदे ----
आज हर कोई मोबाइल का आदी होता जा रहा है। इस के बढ़ते नशे ने हर एक को जकड़ लिया है। चाहे वो बच्चा हो जा बजुर्ग। कोई नही जो इस नशे को छोड़ने को तैयार हो। इस नशे का असर हमारी समरण शक्ति पर भी हो रहा है। जिस से हम सब अंजान है। पहले जहां हर बात हम आसानी से याद रखते थे आज हम छोटी-छोटी बात के लिए मोबाइल पर निर्भर होने लगे हैँ। चाहे कोई अपना काम हो या फिर किसी को याद कराने का काम। हर छोटी बात को मोबाइल पर डाल कर याद करने की कोशिश करना कितना आसान लगने लगा है। इतना ही नही मोबाइल की मैमोरी मैं अपने रोजाना मैं इस्तेमाल होने वाले नंबर को लिख कर कितना हल्का महसूस होता है जैसे कितना बढ़ा बोझ उतर गया। बस एक बटन दबाया और मिल गया नंबर। जिसे याद करने के लिए हम कितनी कोशिश करते घर की दीवार, कॉपी या डायरी का इस्तेमाल होता था। पहले हम को नंबर भी याद रहते थे। पर आज याद रखने का सवाल ही नही होता मोबाइल है न हर मर्ज़ की दवा। मोबाइल का एक और फायदा देखने को मिल रहा है। आसानी से हम झूठ बोलने के आदी होते जा रहे है। इतना ही नही एसएमएस फंडा भी बडा काम का है। जहां भी बैठे हो बात करो किसी को कानों कान ख़बर नही कहा लगे हो। साइंस के तरक्की करने का फायदा किसी को मिले न मिले प्रेम रोग के शिकार मरीज़ इस का भरपूर लाभ ले रहे हैँ। अब घर में चिठ्ठी पकड़े जाने का डर भी ख़तम हो गया हैँ मोबाइल पर संदेश भेजा और उत्तर के लिए इंतजार भी नही करना पड़ता। लेकिन कहते है की मोबाइल का ज्यादा फायदा नुकसान की देता है। इस लिए इस्तेमाल करेँ पर संभल कर।

Jun 16, 2008

ओस की बूंद सी होती है बेटी

----ओस की बूंद सी----
ओस की बूंद होती है बेटी,
मासूम सी प्यारी नन्ही कली
मन मैं ना हो कोई सवाल
हर पल रखे सब का ख्याल
फिर भी क्यों नही सब को लगती अपनी
ओस की बूंद सी .........
माँ ना दे लाड़ उस को
बाप न रखे सिर पर हाथ
दादी भी नही देती उस को लोरी
नानी की कहानी सुनती चोरी चोरी
ओस की बूंद सी होती है बेटी .........

Jun 3, 2008

akhir kab tak

.....AKHIR KAB TAK....
Aaj subah jab akhwar hath main aya tu pahle pane per khabar per nazar gaye ki prem pastab thukane per gang rape. maan me sawal uthne lage ki ye hu kiya raha hai. samaj me kis tarah ki andhi chal pari hai. akhir ladki surkhsit kha hai. aaj ek sawal rah rah ker maan ku kcot raha hai ki ladki ke liye surakshit jaga kon se hai, aye din ase mamle samne aa rahe hai. yaha tak ki ghar ki char-diwari ke ander bi us ko surkshit nahi samja jata, ghar ke bahar tu her sameh kie ankhe us ko gurti huie nazar aa jayegi. kio us ka ankhu se chir haran ker raha hai tu kio fabtia kas ker. yaha tak ki karyasthal mei bi us ke bare main chatkare le ker bate karne walo ki kami nahi hai. sarak per agar koi ladki ja rahi hai tu log palat ker jroor dekte hai, kus ki nazare tu un ka picha tab tak karti hai jab tak bu ankho se ujal na hu jaye. ladki ke liye tu asi persthia pada ker di jati hai ki bu samaj hi nahi pati ki us ne galti kiya ki. jitni teji se log tarki ker rahe hai utni teji se rape, marpit, dhej ke liye bahu ka katal karne jaisi gatno ku bi anzam diya ja raha hai. samachar patro, tv channalo per koi asa din nahi jata jab rape case ki khabar na perkashit hu. kiya samaj intni traki ker raha hai ki apni maan beti ke khud hi chirharan karne walo ke hath nahi kapte. kiya samaj mordren hu raha hai jha rishto ko bhul chuka hai. koi tu ase logo ko btaie hum us maa ke bache hai jha shri krishen ne bhari saba main apni muboli bahan drupti ki rakhsa ki thi, jha shri raam ne apne pita ka bachan pura karne ke liya 14 baras ka banwas le liya tha. hum us bhagwan ke age roz sir tu juka rahe hai lakin us ke samne hi rishto ka khun karne se nahi daar rahe. aaj apni betio ka ghar se bahar niklana hum khud hi mushkil bnate ja rahe hai.
----------------akhir kab tak ladkioko bina kasoor ke saja di jati rahegi. kab tak?

Jun 2, 2008

...........dost hai hum
aaj kal dosti karne wale log bhut hai lakin akhir ye dosti hai kiya, kiya khus pal baat ker li ya phir dost ban ker apna matlab nikal liya. is dosti ke andaz se dosti ki rishta dudlla sa nazar ane laga hai. dost ban ker niwane ka path sahad hi koi pharh pata hai. jara si baat per khatam dosti. aaj tu dost bnane se bi dhar lagne laga hai.....kon samjie dosti ke naam per matlab rakhne wale logo ko ki.......DOST SHABAD NAHI JU MIT JAYE, UMAR NAHI JU DHAL JAYE, YE WO EHSAS HAI JISKE LIYE AGAR JIYA JAYE TO ZINDGE BI KAM PAD JAYE.......... lakin sahad kisi ke paas in ehsas ku samjne wala na bu Dil hai na ki waqt. aaj dostu ki bhir tu bharh rahi hai lakin chehru per parhe mukhute bi apna rang dikha dete hai. lagta hai ki hum apno ke beech main begane hu chale hai. khbi khbi hamara khud ka biswas hme jhota sabit ker deta hai ki palat ker dusro per bishwas karne me barso lag jate hai. baas apne dostu se itna jroor khugi ki ....ULJHAN AGAR KOI AA JAYE TO MUJHSE NA CHUPANA,SAATH NA DE JUBAN TO AAKHON SE JATANA, HAR KADAM PER SATH HAI HUM, DOST BANAYA HAI TO ZARUR AAJMANA...............

Jun 1, 2008

tujhe itthas badlna hai

..........komal hai kamjor nahi tu
nari aaj chahe jitni bhi trakki ker chuki hai lakin purush ki nazar main aaj bhi us ke baare main dharna nahi badal saki. aaj bhi us ko kamjor hi maana jata hai. chahe rishta koi bhi ho.nari ek jiwan main kitne hi rishte ji leti hai maa, bahan , beti, patni, dost, premika ban ker akhir kio har baar us ko hi sahna pare. kio bo purush is soch ka shikar huti hai. lakin is key liye khud bu jayada doshi hai akhir kab tak.....us ko khud is dharna ku khatam karna huga...us ko is soch ke sath age bharna huga.....bhut hu chuka abb tak sahna tuje itthass badlna hai, nari ku koi kah na paye abbla hai bechari hai......... es purush pardhan samaj main us khud apni pahchan bnani hugi. is ke liye us ko apni soch ku badlne ke sath sath samaj ke sath kadam mila ker chalna huga.

May 31, 2008

ऐ भाई जरा सोचो

.......... ऐ भाई जरा सोचो तो
आज इतनी तेज रफ्तार जिन्दगी में हर वक्त बस कल की चिंता में डूबे रहते है। आज के बारे में सोचने बेठै तो भी कल की चिंता सताने लगती है की कल कैसा होगा कल किया होगा। इस चक्कर में लोग पंडितो और तांत्रिको के दरवाज़े पर दस्तक देने वालो की भीड़ बढ़ती जा रही है। अपनी जेब ढ़ीली कर लोग उन को माला माल कर रहे है। जरा भाई एक पल के लिए मेरी बात पर गौर तो फरमाएं की किस के दहलीज पर आप माथा टेकने जा रहे है। अगर वो कल के बारे में जानते तो किया अपना कल ना सवार पाते। क्यों ये दुकानदारी खोल कर लोगों की आंखों पर पट्टी बांधने का काम करते। लेकिन आप तो अपना कल ख़ुद ही खराब कर रहे हैं । इन की जेब भर कर। ये मैं इस लिए बता रही हूं। आज मेरे पास कुछ इस तरह का मामला आया तांत्रिको के चक्कर में पड़ कर एक आदमी ने अपनी पूंजी तो गवां दी साथ में अपना जीवन भी तबाह कर लिया। रोज अखवारो के पन्नो पर एक आध ऐसी खबर पढ़ने को मिल ही जाती है जिस में तांत्रिक के चक्कर में लड़के या लड़की की बलि दे दी। लेकिन फिर भी हम पढ़े लिखे लोग आंखों पर पट्टी बांध कर उन के दरवाजों पर पहुंच जाते है। एक तरफ तो हम सब कहते रहते हैं हम पढ़े लिखे हैं, लेकिन दूसरी तरफ़ अनपढ़ लोगों की तरह इन की बातों पर बिश्वास कर आंखे बंद कर लेते हैं। पता नही कब हम लोग गहरी नींद से जग पायेंगे और कब तक हम इन के चक्कर मै अपनी जमा पूंजी को बर्बाद करते रहेंगे। उस पल का इंतजार मुझ को तो हैं। अगर आप को हैं तो ख़ुद से शुरूआत करेँ। क्योंकि एक-एक जुड़ कर ही काफिला तैयार होगा और हम नया सवेरा ला पांएंगें।

Phir kio ye ahsas aya

-------Phir kio ye ahsas aya-------

aaj na jane kio gujra jmana yaad aya,
koi nahi hai pass phir kio ye ashass aya,

dil ne kha yaad na ker bite huie lamhu ko,
per in ankhu me kio bhi aaj moti chalak aya,

tum se door nikal aye te hum tu bhut,
aaj phir manzil me hmari bhi mukam aya,

gum hu chale gaye the duniya ki bhir me,
humeh kio tumhare pass hune ka khyal aya,

jindgi ki bachi chand sansu me,
aaj phir jinda hune ka ahsas aya,

gujar gaye the jo karwa bhut pahle,
aaj phir bewafa hum per hi iljam aya.

May 30, 2008

--------Nani Pari----------
nani pari asman me urne ke sapne sanjoe
takti hai her kisi ke or
per oski babas nigaho me shalke ansu
kio nahi dekhe us ki or
pri ne socha khud urh ker dekho
charu taraf se aye awaje kam nahi tujh koi or
roie pari per na mani us ki kisi ne
naraz huie khud per kio aa gaye bah is or
-------kio aaj phir bhigi tere ankhe------
kio aaj phir tere aakhe bhigi huie
gum na ker aaj phir badla hai koi
rozahi niklte hai sarak per ase
dil ko samja le abi pass se gujra hai koi
her cahre per dond na us ko ase
chand bate haske kare, apne nahi huta koi
muskura ker mila ker jmane se
haste tu hai sab, ansu bhata nahi hai koi
uth aaj phir imthaan hia tera
kadam tu uthe per saath nahi chalta hai koi

May 29, 2008

badlte rishte

----Badal rahe hai musam ke sath rishte-----
her or hai aaj nafrat ke shaie huie badal
asman per bi dhaki huie hai dund chader
her ek ke mukh per hai ek chupi
hutu per hasee tu hai per ankhu main nami
chand ki rushni per aaj lagta hai pahra
kali raat ka saya hu raha phir gahra
dekh nazara sab darne laga hai maan
khi khu na jaye apnu ka anmol dhan.